Gorakhpur : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के जंगल कौड़िया ब्लॉक की ग्राम पंचायत जिंदापुर की बबीता (Babita) की कहानी साहस और प्रेरणा का जीवंत चित्र है। बबीता का एक बड़ा परिवार था जिसमें पिता, तीन भाई और चार बहनें थीं। उसी परिवार में पली-बढ़ी बबीता ने कम उम्र में ही जिंदगी की कठिनाइयों का सामना किया। 12 साल पहले, जब वह सिर्फ 15 साल की थी, माँ का देहांत हो गया। पिता, एक किसान हैं और परिवार के इकलौते कमाने वाले हैं। खेती की सीमित आय के कारण आर्थिक तंगी हमेशा साये की तरह साथ रही। माँ के जाने के बाद बबीता को वह पोषण और मार्गदर्शन नहीं मिला, जिसकी उसे जरूरत थी। पिता समाज की रूढ़ियों से बंधे हुए थे और मानते थे कि लड़कियों का स्थान घर की चारदीवारी तक ही सीमित है। उन्हें डर था कि बाहर निकलने पर बबीता हिंसा का शिकार हो सकती है।
आत्मविश्वास की पहली किरण
चार साल पहले, जब ब्रेकथ्रू के समुदायिक कार्यकर्ता ने बबीता से मुलाकात की, वह बेहद शर्मीली और बोलने में झिझकती थी। लेकिन ब्रेकथ्रू के युवा समूह में शामिल होने के बाद उसकी जिंदगी में बदलाव हुआ। नियमित बैठकों में हिस्सा लेने से उसका आत्मविश्वास जागा। धीरे-धीरे वह मुखर हुई और समाज की उन रूढ़ियों को चुनौती देने का फैसला किया, जो लड़कियों की क्षमताओं पर सवाल उठाती थीं। बबीता का सपना था कि वह अपने परिवार की आर्थिक मदद करे और यह साबित करे कि लड़कियां किसी से कम नहीं।
पिता का विरोध और बबीता की जिद
जब बबीता ने स्वयं सहायता समूह की सखी बनने की इच्छा जाहिर की, तो पिता ने सख्त ऐतराज किया। उनकी सोच थी कि लड़कियों को घर संभालना चाहिए, बाहर निकलना असुरक्षित है। लेकिन बबीता ने हिम्मत नहीं हारी। उसने पिता को बार-बार समझाया कि उसकी कमाई परिवार का बोझ हल्का कर सकती है। लंबी बहस और अनुनय के बाद, पिता आखिरकार उसे गांव में सखी के रूप में काम करने की इजाजत देने को राजी हुए। यह छोटा-सा कदम बबीता के लिए अवसरों का नया द्वार खोलने वाला था।
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नई उड़ान की शुरुआत
सखी के रूप में काम करते हुए बबीता का आत्मविश्वास और मजबूत हुआ। आसपास के गांवों और ब्लॉकों में यात्रा ने उसे नई ऊर्जा दी। लेकिन उसका दिल कुछ बड़ा करने को बेकरार था। एक दिन ब्लॉक की यात्रा के दौरान उसे ‘ड्रोन दीदी’ के लिए आवेदन की जानकारी मिली। तीव्र प्रतिस्पर्धा के बावजूद बबीता ने हिम्मत दिखाई, आवेदन किया और चयनित हो गई। यह खबर सुनते ही वह खुशी से झूम उठी और अपने मार्गदर्शक सामुदायिक कार्यकर्ता को यह खुशखबरी सुनाई।
पिता की चिंता, बबीता का साहस
‘ड्रोन दीदी’ के प्रशिक्षण के लिए बिहार जाने का विचार सुनकर पिता फिर आड़े आए। उनकी चिंता थी—बेटी की सुरक्षा और उसकी शादी की संभावनाएं। बबीता ने हार नहीं मानी। उसने पिता से बार-बार बात की, उन्हें बताया कि यह अवसर उसे आत्मनिर्भर बनाएगा और परिवार की स्थिति को बेहतर करेगा। उसकी दृढ़ता और उदासी देखकर पिता आखिरकार मान गए, बशर्ते वह अपनी लोकेशन की जानकारी देती रहे।
सपनों को पंख और आलोचनाओं का सामना
प्रशिक्षण पूरा कर बबीता जब लौटी तो उसके पास था 10 लाख का ड्रोन—उसके सपनों का नया पंख। गांव में कुछ लोग उसकी सफलता पर सवाल उठाने लगे, खासकर उसकी एससी पृष्ठभूमि को लेकर। लेकिन बबीता ने आलोचनाओं को नजरअंदाज किया। पिता ने भी उसका हौसला बढ़ाया और कहा, “लोगों की बातों को छोड़ अपने काम पर ध्यान दे।” बबीता ने ड्रोन उड़ाकर खेतों में दवा और खाद छिड़कने का काम शुरू किया। वह प्रति एकड़ 400 रुपये कमाती थी और हर दिन 4-5 एकड़ के खेतों में काम कर 20,000 से 25,000 रुपये महीने की कमाई करने लगी।