Ayodhya : भारतीय सेना का हर जवान देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार रहता है, लेकिन कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो दिल को छू लेती हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है अयोध्या के लाल, लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी (Shashank Tiwari) की, जिन्होंने अपने साथी की जान बचाने के लिए अपनी जिंदगी की बाजी लगा दी। उनकी इस वीरता और बलिदान को सम्मान देने के लिए अयोध्या में उनका स्मारक बनाया जाएगा।
नदी की तेज धार में छलांग, साथी को बचाने की कोशिश
सिक्किम में तैनात 22 वर्षीय लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी ने उस दिन कुछ ऐसा किया, जो उनकी बहादुरी और निस्वार्थ भावना को हमेशा के लिए अमर कर गया। उनकी यूनिट का एक साथी अचानक तेज बहाव वाली नदी में गिर गया। बिना एक पल की देरी किए, शशांक ने अपनी जान की परवाह न करते हुए नदी में छलांग लगा दी। वह अपने साथी को बचाने की कोशिश में जुट गए, लेकिन नदी की प्रचंड धार ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। इस हादसे में शशांक की जान चली गई, लेकिन उनका बलिदान भारतीय सेना की उस गौरवशाली परंपरा का प्रतीक बन गया, जहां साथी की जान से बढ़कर कुछ नहीं होता।
मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि, परिवार को 50 लाख की सहायता
शुक्रवार को अयोध्या पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा, “शशांक का बलिदान हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिए अयोध्या में उनका स्मारक बनाया जाएगा।” इसके साथ ही, राज्य सरकार ने उनके परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की।
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केवल छह महीने की सेवा, फिर भी बन गए मिसाल
लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की कहानी इसलिए और खास है, क्योंकि उन्होंने मात्र छह महीने पहले दिसंबर में भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त किया था। सिक्किम स्काउट्स में उनकी यह पहली तैनाती थी। इतने कम समय में ही उन्होंने जो साहस और समर्पण दिखाया, वह हर युवा के लिए प्रेरणा है। भारतीय सेना ने उनकी बहादुरी को सलाम करते हुए कहा, “लेफ्टिनेंट तिवारी ने सहयोग और निस्वार्थता की ऐसी मिसाल कायम की है, जो हमेशा याद रखी जाएगी।”
अयोध्या में अंतिम विदाई, पिता अमेरिका से लौट रहे
शुक्रवार देर रात लेफ्टिनेंट शशांक का पार्थिव शरीर बागडोगरा एयरपोर्ट से अयोध्या लाया गया। रातभर उनका पार्थिव शरीर फैजाबाद मिलिट्री हॉस्पिटल में रखा गया। शनिवार को यानी आज जामतारा घाट पर उनके अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गई है। शशांक अपने माता-पिता के इकलौते बेटे थे। उनके पिता, जंग बहादुर तिवारी, जो मर्चेंट नेवी में कार्यरत हैं, इस समय अमेरिका में थे और शनिवार सुबह अयोध्या पहुंच गए हैं।
अयोध्या के गौरव, शशांक तिवारी
अयोध्या सिटी मजिस्ट्रेट राजेश मिश्रा ने बताया कि लेफ्टिनेंट शशांक की शहादत न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे अयोध्या के लिए गर्व का क्षण है। उनकी वीरता की कहानी हर उस युवा को प्रेरित करेगी, जो देश सेवा का सपना देखता है। शशांक का स्मारक न सिर्फ उनकी याद को संजोएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी उनके बलिदान की कहानी सुनाएगा।
लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की यह कहानी न केवल एक सैनिक की वीरता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सच्चा साहस वही है, जो दूसरों की भलाई के लिए अपनी सबसे कीमती चीज—अपना जीवन—दांव पर लगा दे। उनकी शहादत को सलाम!